Monday, June 20, 2011

कहाँ गुम हो..................

कहाँ ग़ुम हो बताओ तो  कभी
हाल अपना भी सुनाओ तो कभी
कितनी ख़ामोशी से सब सुनते हो
जाने क्या-क्या ख्याल बुनते हो
अपनी बातों में उलझाओ तो कभी
हाल अपना भी सुनाओ तो कभी
लब चुप,आँखें बोलती हैं
राज़ दिल के सारे खोलती हैं
कोई राज़ जुबां पे लाओ तो कभी 
हाल अपना भी सुनाओ तो  कभी
हर शर्त,हर बात मान लूंगी मैं
बिन कुछ पूछे तुम्हारा हाथ थाम लूंगी मैं
तुम इतनी हिम्मत दिखाओ तो कभी
हाल अपना भी सुनाओ तो कभी
कहाँ गुम हो बताओ तो कभी.









Monday, June 13, 2011

तेरे अंदाज़

जाने क्या-क्या अंदाज़ लगा लेते हो 
और फिर रोज़ मुझे नयी सजा देते हो
पास आते हो,बुलाते हो,बिठाते हो पलकों पर 
और जब जी चाहे पलकें झुका देते हो
तुम्हारी आँखों में चाहत का अम्बार देखा है मैनें
पर तुम हर बार ये चाह दबा लेते हो
बात करके  कोई एहसान किया हो जैसे 
हर गुफ़्तगू में ये एहसास दिला देते हो
कुछ न कहना तुमसे ये आदत है मेरी
तुम इसका ग़लत मतलब लगा लेते हो
किसी की परवाह करते हो बेपरवाही से
मान जाओ यूं तुम ख़ुद को दगा देते हो
जाने क्या-क्या अंदाज़ लगा लेते हो
और फिर रोज़ मुझे नयी सजा देते हो.