जाने क्या-क्या अंदाज़ लगा लेते हो
और फिर रोज़ मुझे नयी सजा देते हो
पास आते हो,बुलाते हो,बिठाते हो पलकों पर
और जब जी चाहे पलकें झुका देते हो
तुम्हारी आँखों में चाहत का अम्बार देखा है मैनें
पर तुम हर बार ये चाह दबा लेते हो
बात करके कोई एहसान किया हो जैसे
हर गुफ़्तगू में ये एहसास दिला देते हो
कुछ न कहना तुमसे ये आदत है मेरी
तुम इसका ग़लत मतलब लगा लेते हो
किसी की परवाह करते हो बेपरवाही से
मान जाओ यूं तुम ख़ुद को दगा देते हो
जाने क्या-क्या अंदाज़ लगा लेते हो
और फिर रोज़ मुझे नयी सजा देते हो.