Sunday, December 4, 2011

वो मुझे आइना दिखा रहा था

ना पूछिए वो क्या किस्सा सुना रहा था
मुझे सामने बिठा कर आइना दिखा रहा था
पूछता भी कैसे ,मैं अपना हूँ या पराया
जब सारे जहाँ को वो अपना बता रहा था
वो चल दिया कुछ ऐसे जैसे मैं ,मैं नहीं हूँ
... अब समझ में आया वो मुझे हद दिखा रहा था
यूं छोड़ दूं तुझे मैं ऐसा संगदिल कहाँ हूँ
मैं जानता हूँ तू क्या छुपा रहा था
मेरी जान तुझको ,इतनी खबर नहीं है
तू आइने को ही आइना दिखा रहा था