Wednesday, July 13, 2011

ग़म में मुस्कराना आ गया

अक्स पानी में छुपाना आ गया
हमको ग़म में मुस्कराना आ गया,
बाद मुद्दत लौट  आया वो मगर
दर्द वो बरसों पुराना न गया,
मुहब्बत तेरे बस की न थी
कभी ये सच तुझसे माना  न गया,
हमारे लिए दुनिया से वो क्या लड़ता कभी
हम पर हक़ जिससे जताया  न गया,
तेरी ज़िद थी तू न बदलेगा कभी
हमें ही ख़ुद को भुलाना आ गया,
तेरा शहर कब के छोड़ आये हम
नज़रों से तेरा ठिकाना न गया,
 अपने दिल की नमीं को बाखूबी
सख्त लहज़े से सुखाना आ गया,
अक्स  पानी में छुपाना आ गया
हमको ग़म में मुस्कराना आ गया .