Friday, July 15, 2011

औरत पानी है ................

पानी
अक्सर तुझे देख कर
अपना वज़ूद ढूँढने लगती हूँ मैं
शुरू करती हूँ वहां से
जहाँ मेरा बचपन बीता था
वो बेफिक्र ,हंसते खेलते दिन
वो कागज की नाँव बनाना,फिर उसे नहर में बहाना
कितना मज़ा आता था
फिर एक दिन अचानक मुझे बताया गया
सुनों ,
तुम लड़की हो
तुम्हारे कुछ दाएरे हैं
बेहतर होगा उस रंग में ढल जाओ,जिसमें हम चाहते हैं
हाँ
ये शुरुआत थी मेरे पानी बनने की
घुल गयी मैं उन दायरों के रंगों में
खामोश ,बिल्कुल खामोश
अगला पड़ाव थी वो दहलीज
जहाँ डोली जाती है और वहीँ से अर्थी उठती है,
कितनी खुश थी मैं
दायरों से बाहर 
अपनी इस नयी पहचान से,
इंतजार के पल
उस बंद दरवाज़े के खुलने की आवाज़
उफ्फफ
धड़कन जैसे हलक़ में रुक गयी हो
ख़ुशबू भरे हाथों ने मेरा घूँघट उठाया
और
पहला जुमला
सुनों
तुम इस घर की इज्ज़त हो
तुम्हारी एक दहलीज़ है
बेहतर होगा इसे कभी न लांघना
यहाँ किसी को तुमसे तकलीफ़ न हो
सबसे ऐसे मिल जाओ कि कोई फर्क़ न रहे
और मैं
फिर से पानी बन गयी
ख़ामोश ,बिल्कुल ख़ामोश
वक़्त गुज़रा
आँचल में एक नन्हा फूल आया
नयी उम्मीद जगी
आने वाला कल मेरा होगा
उस फूल को प्रेम से सींचते कितने बरसों इंतजार किया
फिर ,एक दिन
उस उम्मीद ने कहा
सुनों
तुम माँ हो
तुम्हारी कुछ हदें हैं
बेहतर होगा ,तुम अपनी हदों में रहो
मुझे मेरी ज़िन्दगी जीने दो
मैं
हाँ मैं 
एक बार फिर से पानी बन गयी
और आज तक पानी हूँ
इसलिए नहीं कि मैं कमज़ोर हूँ
बल्कि इसलिए क्योंकि मैं जानती हूँ
ज़िन्दगी में पानी की अहमियत क्या है ...........