Friday, November 11, 2011

कुछ ना पूछिए

कुछ भी पूछिए ये हक़ीकत ना पूछिए
क्यों आपसे है मुझको मोहब्बत ना पूछिए
उम्र गुज़ार दूं मैं इंतज़ार में तेरे
मर जाऊं ,मिट जाऊं एक दीदार पर तेरे
मेरी दीवानगी की हदें ना पूछिए
कुछ भी पूछिए ये हक़ीकत ना पूछिए.
क्यों आपसे है मुझको मोहब्बत ना पूछिए

सोंचते हैं

सोंचते  हैं शहर से जाएँ  कहीं
ग़मों को छाँट आयें कहीं
घना हो गया है जंगल यादों का
कलम से काट आयें कहीं
कागजों का ढेर हो गया पास मेरे
बहते पानी में सिरा आयें कहीं
बन रहा है दर्द का दरिया मुझमें
चलो समंदर में उतर आयें कहीं
पल भर में उन्हें गले लगा लूँगा
वो मुझसे मिलने आयें तो कहीं
सोंचते हैं शहर से जाएँ कहीं

कैसे रह पाओगे तुम

जब किसी के प्यार के घर को जलाओगे तुम
ये बताओ क्या कभी चैन फिर पाओगे तुम
चाहते हो हर गुनाह माफ कर दूं मैं तुम्हारा
क्या मेरी एक भूल भी माफ कर पाओगे तुम
ये तुम्हारा हुक्म था,पलट कर न देखेगा कोई
क्या खबर थी पलट कर आवाज़ लगाओगे तुम
माना तुम्हारी आदत रही,जोड़ना और तोड़ना
पर अब मुझको कभी ना जोड़ पाओगे तुम
दिल में दर्द का दरिया गहरा,बहुत गहरा है
एक झलक भी दिखला दी तो डूब ही जाओगे तुम
जब किसी के प्यार के घर को जलाओगे तुम