Thursday, December 29, 2011

गुज़ारिश

ये शिकायत नहीं गुज़ारिश है,कि
या तो थाम लो मुझे,या छोड़ दो मुझे
पर
बार-बार अपने दायरों का वास्ता देकर
यूं पल-पल तोड़ो न मुझे
मैं समझती हूँ दुनिया के रिवाज़ों को
सारी रस्मों को,एतराजों को
लेकिन,
अपने प्रेम पर हमनें कायदे कहा लगाये थे
दुनियादारी के पहरे कहाँ बिठाये थे
तो इसका वास्ता देकर यूं पल -पल तोड़ो न मुझे
या तो थाम लो मुझे,या छोड़ दो मुझे
मैंने कब कहा तुम दुनिया की परवाह ना करो
ना ये कहा कि तुम अपनों की चाह ना करो
पर,तिनके सा ही सही,कुछ तो हक मेरा भी है
मैं जो सब कुछ गवाएँ बैठी हूँ
अपनी दुनिया दाँव पर लगाये बैठी हूँ
तो अब किसका वास्ता देकर तोड़ते हो मुझे
यूं बार -बार थाम कर छोड़ते हो मुझे
मेरी ख़ामोशी में भी उसे अपना जवाब मिल गया
मेरी हंसी में उसे मेरे दर्द का अंदाज़ मिल गया