" चिपक सी गयी है ये मुस्कराहट जैसे ,
हटाता हूँ बार-बार पर हटती ही नहीं ,
फिर सोचता हूँ ,चलो अच्छा ही है ,
मेरे भीतर की तबाही पे ये एक पर्दा ही सही "
रचना प्रेम
हटाता हूँ बार-बार पर हटती ही नहीं ,
फिर सोचता हूँ ,चलो अच्छा ही है ,
मेरे भीतर की तबाही पे ये एक पर्दा ही सही "
रचना प्रेम