Sunday, May 26, 2013

" चिपक सी गयी है ये मुस्कराहट  जैसे ,
हटाता हूँ बार-बार पर हटती ही नहीं ,
फिर सोचता हूँ ,चलो अच्छा ही है ,
मेरे भीतर की तबाही पे ये एक पर्दा ही सही "

                                              रचना प्रेम

Wednesday, May 8, 2013

अब तेरे आग़ोश में खो जाने का मन है
ऐ ख़ुदा अब मुझको सो जाने का मन है
थक गयी  हूँ दुनिया के मसाइल से
अब तेरी पनाह में सुस्ताने का मन है 

Thursday, January 24, 2013

उसे क्यों मैं भूल जाऊं,उसमें क्या नहीं है
मेरा साहिब ख़ुदा है मेरा,कोई दूसरा नहीं है,
माना कि मिलने में,वो बात अब नहीं हैं
ऐसा नहीं कि हममें जज़्बात ही नहीं हैं
मुझसे ख़फा है लेकिन,मुझसे जुदा नहीं है
मेरा साहिब ख़ुदा है मेरा कोई दूसरा नहीं है

Tuesday, January 22, 2013

बावफा थे इसलिए नज़रों से उनकी गिर गए
शायद उन्हें तलाश किसी बेबफा की थी

मैं खाली हाथ हूँ,तेरी नज़र ये एहसास दिल गयी
मैं ख़ुद से ज्यादा तुझे क्या देता
जब भी तेरी नाराज़गी की  वजह सोचता हूँ
यही सोचता हूँ मैं

 मैं जिस हालात में हूँ ,उसमें,तेरी खता कुछ भी नहीं
अपनी ग़लतियों की,कुछ तो सज़ा मिलनी थी मुझे

Tuesday, January 15, 2013

उसका तसव्वुर ही ख़ुदाई सा लगे है
मेरा साहिब ही मुझे मेरा साईं लगे है