Thursday, February 23, 2012

कब तक

भीड़ में तनहा ऐ दिल कब तक चलेगा
जाने कब तक ये अकेलापन खलेगा
मैं तेरी उम्मीदों में एक उम्मीद हूँ 
और मेरी तो बस तू ही,एक उम्मीद है
चाहतों का ये फर्क जाने कब मिटेगा
जाने कब तक ये अकेलापन खलेगा
 तेरे लिए हर रिश्ता,है एक दिल्लगी 
मेरे तो हर रिश्ते में मेरी जान है
सोच का ये फासला  कब घटेगा
जाने कब तक ये अकेलापन खलेगा
                                      रचना गंगवार