ख़ुद को भुला सको, तो इश्क़ करो
जो सब कुछ लुटा सको, तो इश्क़ करो .
सपनों का आसमान,उम्मीदों का धरातल
दांव पर लगा सको ,तो इश्क़ करो.
दुनिया की तोहमतें,तानें और बेरुख़ी
हंस कर उठा सको, तो इश्क़ करो .
अपनों के सवाल और नाराज़गी उनकी
अदब से निभा सको, तो इश्क़ करो .
यहाँ हैं जात,मज़हब और हैसियत की
दूरियां
ये फ़ासले ,जो मिटा सको ,तो इश्क़ करो.
तमाम आंधियां ,आती हैं तो आ जाएँ
गर हौसला दिखा सको, तो इश्क़ करो.
मैं,मैं ना रहूँ और तुम, तुम ना रहो
रूह,रूह से मिला सको ,तो इश्क़ करो .
“रचना”