Tuesday, March 20, 2012

प्रेम

यूं तो प्रेम में आत्मसम्मान की कोई जगह नहीं होती
वहां तो सिर्फ प्रेम ही प्रेम  है,

पर किसी के जीवन में अवांछित सा पड़े रहना भी ठीक नहीं
इसलिए मैनें अपने कुछ दायरे बना लिए हैं ,
मैं ये तो नहीं कहूँगी कि मैं खुश हूँ
पर हाँ ,अब मेरा हंसना और रोना
किसी की अपेक्षा या उपेक्षा की राह नहीं तकता .