Tuesday, October 4, 2011

मुझे अच्छा नहीं लगता

तेरा चुपचाप रह जाना मुझे अच्छा नहीं लगता
यूं महफ़िल से चले जाना मुझे अच्छा नहीं लगता
तेरी बेरुखी,बेगानगी मंजूर  है लेकिन
तेरा आंख चुराना मुझे अच्छा नहीं लगता
सह लूंगी तमाम ग़म तेरे हिस्से के हंस कर मैं
अश्क,आँखों में तेरी आना मुझे अच्छा नहीं लगता
मान जाउंगी मैं ,जो तू मना लेगा मुझे
यूं मुझे भी  रूठ जाना अच्छा नहीं लगता 
मेरी दीवानगी की हद कलम काग़ज तक सिमटी है
प्यार महफ़िल में जताना मुझे  अच्छा नहीं लगता
तेरा चुपचाप रह जाना मुझे  अच्छा नहीं लगता
यूं महफ़िल से चले जाना मुझे  अच्छा नहीं लगता


मेरी नींद

अब भी मेरी नींद तेरे दरवाज़े पर आती तो होगी
बेतहाशा तुझे आवाज़ लगाती तो  होगी
उसकी आहट से तेरी नींद भी खुलती होगी
जब वो तेरे महलों की खिड़की बजाती होगी
तू चादर तान के सोने का बहाना बनाता होगा
जब मेरा नाम तेरे कानों में गुनगुनाती होगी 
तू भी करवट पर करवट बदलता होगा
जब मेरी नींद, तेरी नींद  उड़ाती होगी
तू जब मेरी यादों से हार जाता होगा ,फिर
मेरी नींद ही तुझे लोरी दे के सुलाती होगी