कभी कभी जीवन में ऐसा वक़्त भी आता है
जब इन्सान अपने दिल को आप ही समझता है,
गुज़रे वक़्त का वापस आना नामुमकिन है लेकिन फिर भी
काश वो दिन वापस आ जायें ऐसी दुआ मनाता है,
तन्हा हों या हों महफिल में,कोई भी वक़्त,कहीं भी हों हम
जाने कहाँ से तेरा चेहरा,तेरा ख़याल आ जाता है,
दिल का क्या है,पागल है ये,अँधा प्रेम ये करता है
ख़्वाब में भी तुम आ जाओ तो,सच में जशन मनाता है,
ज़ज्बातों को रोक जो पाए ऐसी कोई तरक़ीब कहाँ
इंसा क्या है,क्या है खुदा, हर कोई बह जाता है,
दुनिया कहती थी कहती है तुम पर यकीं नादानी है
लेकिन हमारे यकीं को केवल,तुम पे यकीं ही आता है,
दिल दिमाग़ के रिश्ते हैं वो,जो टूटते हैं और छूटते हैं
रूह से रूह का रिश्ता तो,जन्मों साथ निभाता है .
मेरी हर ख़ुशी में,ग़म में बस तू ही काम आया , मेरे ख्याल मेरा लख्तेजिगर है तू , तनहा समझ रहे हैं मुझको ज़माने वाले , इनको ख़बर नहीं कि मेरा हमसफ़र है तू .
Wednesday, July 20, 2011
Friday, July 15, 2011
औरत पानी है ................
पानी
अक्सर तुझे देख कर
अपना वज़ूद ढूँढने लगती हूँ मैं
शुरू करती हूँ वहां से
जहाँ मेरा बचपन बीता था
वो बेफिक्र ,हंसते खेलते दिन
वो कागज की नाँव बनाना,फिर उसे नहर में बहाना
कितना मज़ा आता था
फिर एक दिन अचानक मुझे बताया गया
सुनों ,
तुम लड़की हो
तुम्हारे कुछ दाएरे हैं
बेहतर होगा उस रंग में ढल जाओ,जिसमें हम चाहते हैं
हाँ
ये शुरुआत थी मेरे पानी बनने की
घुल गयी मैं उन दायरों के रंगों में
खामोश ,बिल्कुल खामोश
अगला पड़ाव थी वो दहलीज
जहाँ डोली जाती है और वहीँ से अर्थी उठती है,
कितनी खुश थी मैं
दायरों से बाहर
अपनी इस नयी पहचान से,
इंतजार के पल
उस बंद दरवाज़े के खुलने की आवाज़
उफ्फफ
धड़कन जैसे हलक़ में रुक गयी हो
ख़ुशबू भरे हाथों ने मेरा घूँघट उठाया
और
पहला जुमला
सुनों
तुम इस घर की इज्ज़त हो
तुम्हारी एक दहलीज़ है
बेहतर होगा इसे कभी न लांघना
यहाँ किसी को तुमसे तकलीफ़ न हो
सबसे ऐसे मिल जाओ कि कोई फर्क़ न रहे
और मैं
फिर से पानी बन गयी
ख़ामोश ,बिल्कुल ख़ामोश
वक़्त गुज़रा
आँचल में एक नन्हा फूल आया
नयी उम्मीद जगी
आने वाला कल मेरा होगा
उस फूल को प्रेम से सींचते कितने बरसों इंतजार किया
फिर ,एक दिन
उस उम्मीद ने कहा
सुनों
तुम माँ हो
तुम्हारी कुछ हदें हैं
बेहतर होगा ,तुम अपनी हदों में रहो
मुझे मेरी ज़िन्दगी जीने दो
मैं
हाँ मैं
एक बार फिर से पानी बन गयी
और आज तक पानी हूँ
इसलिए नहीं कि मैं कमज़ोर हूँ
बल्कि इसलिए क्योंकि मैं जानती हूँ
ज़िन्दगी में पानी की अहमियत क्या है ...........
अक्सर तुझे देख कर
अपना वज़ूद ढूँढने लगती हूँ मैं
शुरू करती हूँ वहां से
जहाँ मेरा बचपन बीता था
वो बेफिक्र ,हंसते खेलते दिन
वो कागज की नाँव बनाना,फिर उसे नहर में बहाना
कितना मज़ा आता था
फिर एक दिन अचानक मुझे बताया गया
सुनों ,
तुम लड़की हो
तुम्हारे कुछ दाएरे हैं
बेहतर होगा उस रंग में ढल जाओ,जिसमें हम चाहते हैं
हाँ
ये शुरुआत थी मेरे पानी बनने की
घुल गयी मैं उन दायरों के रंगों में
खामोश ,बिल्कुल खामोश
अगला पड़ाव थी वो दहलीज
जहाँ डोली जाती है और वहीँ से अर्थी उठती है,
कितनी खुश थी मैं
दायरों से बाहर
अपनी इस नयी पहचान से,
इंतजार के पल
उस बंद दरवाज़े के खुलने की आवाज़
उफ्फफ
धड़कन जैसे हलक़ में रुक गयी हो
ख़ुशबू भरे हाथों ने मेरा घूँघट उठाया
और
पहला जुमला
सुनों
तुम इस घर की इज्ज़त हो
तुम्हारी एक दहलीज़ है
बेहतर होगा इसे कभी न लांघना
यहाँ किसी को तुमसे तकलीफ़ न हो
सबसे ऐसे मिल जाओ कि कोई फर्क़ न रहे
और मैं
फिर से पानी बन गयी
ख़ामोश ,बिल्कुल ख़ामोश
वक़्त गुज़रा
आँचल में एक नन्हा फूल आया
नयी उम्मीद जगी
आने वाला कल मेरा होगा
उस फूल को प्रेम से सींचते कितने बरसों इंतजार किया
फिर ,एक दिन
उस उम्मीद ने कहा
सुनों
तुम माँ हो
तुम्हारी कुछ हदें हैं
बेहतर होगा ,तुम अपनी हदों में रहो
मुझे मेरी ज़िन्दगी जीने दो
मैं
हाँ मैं
एक बार फिर से पानी बन गयी
और आज तक पानी हूँ
इसलिए नहीं कि मैं कमज़ोर हूँ
बल्कि इसलिए क्योंकि मैं जानती हूँ
ज़िन्दगी में पानी की अहमियत क्या है ...........
Wednesday, July 13, 2011
ग़म में मुस्कराना आ गया
अक्स पानी में छुपाना आ गया
हमको ग़म में मुस्कराना आ गया,
बाद मुद्दत लौट आया वो मगर
दर्द वो बरसों पुराना न गया,
मुहब्बत तेरे बस की न थी
कभी ये सच तुझसे माना न गया,
हमारे लिए दुनिया से वो क्या लड़ता कभी
हम पर हक़ जिससे जताया न गया,
तेरी ज़िद थी तू न बदलेगा कभी
हमें ही ख़ुद को भुलाना आ गया,
तेरा शहर कब के छोड़ आये हम
नज़रों से तेरा ठिकाना न गया,
अपने दिल की नमीं को बाखूबी
सख्त लहज़े से सुखाना आ गया,
अक्स पानी में छुपाना आ गया
हमको ग़म में मुस्कराना आ गया .
हमको ग़म में मुस्कराना आ गया,
बाद मुद्दत लौट आया वो मगर
दर्द वो बरसों पुराना न गया,
मुहब्बत तेरे बस की न थी
कभी ये सच तुझसे माना न गया,
हमारे लिए दुनिया से वो क्या लड़ता कभी
हम पर हक़ जिससे जताया न गया,
तेरी ज़िद थी तू न बदलेगा कभी
हमें ही ख़ुद को भुलाना आ गया,
तेरा शहर कब के छोड़ आये हम
नज़रों से तेरा ठिकाना न गया,
अपने दिल की नमीं को बाखूबी
सख्त लहज़े से सुखाना आ गया,
अक्स पानी में छुपाना आ गया
हमको ग़म में मुस्कराना आ गया .
Saturday, July 9, 2011
रूह कहती है .................
बहुत कुछ है दुनिया में पाने के लिए
आप भी कहाँ रुक गए ज़माने के लिए
साथ होकर,साथ होना ये और बात है
वरना साथी यहाँ बहुत हैं दिखाने के लिए
हर ख्वाहिश हो पूरी ,हर चीज हो हासिल,कहाँ ज़रूरी है
कुछ शिकवे भी चाहिए दिल जलाने के लिए
पलकें मूँद कर तो आसमान भी पा जाओगे, लेकिन
ऑंखें खोलनी होती हैं कदम बढाने के लिए
हारे कहाँ हो जंग अभी बाकी है
ये एहसास तो है हौसला बढाने के लिए
दुनिया कहती है कर रफ़्तार तेज गर आगे बढ़ना है
ठोकर लगे तो कौन आता है उठाने के लिए
बहत कुछ है दुनिया में पाने के लिए
आप भी कहाँ रुक गए ज़माने के लिए .
आप भी कहाँ रुक गए ज़माने के लिए
साथ होकर,साथ होना ये और बात है
वरना साथी यहाँ बहुत हैं दिखाने के लिए
हर ख्वाहिश हो पूरी ,हर चीज हो हासिल,कहाँ ज़रूरी है
कुछ शिकवे भी चाहिए दिल जलाने के लिए
पलकें मूँद कर तो आसमान भी पा जाओगे, लेकिन
ऑंखें खोलनी होती हैं कदम बढाने के लिए
हारे कहाँ हो जंग अभी बाकी है
ये एहसास तो है हौसला बढाने के लिए
दुनिया कहती है कर रफ़्तार तेज गर आगे बढ़ना है
ठोकर लगे तो कौन आता है उठाने के लिए
बहत कुछ है दुनिया में पाने के लिए
आप भी कहाँ रुक गए ज़माने के लिए .
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