Tuesday, November 29, 2011

कह नहीं सकते

 हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते
दूर कितने भी हों वो हमसे जुदा रह नहीं सकते
घड़ियाँ गिन रहे हैं जिस तरह हम उनकी याद में
वो हमारा नाम ले लेकर दिन गुजारते होंगे
सितम है वक़्त का बस और कुछ कह नहीं सकते
दूर कितने भी हों वो हमसे जुदा रह नहीं सकते

Friday, November 25, 2011

क्या कहें ?

ज़िन्दगी का हर लम्हा एक कहानी हो गया
वक़्त यादों की हवा में पानी-पानी हो गया
क्या गिला किससे करें ये जानते हैं हम ऐ खुदा
बावफा थे इसलिए हर रिश्ता बेमानी हो गया
बहुत कुछ देने हमें ज़िन्दगी आयी मगर
... हालत कुछ ऐसे हुए कि सब निशानी हो गया
ठोकरें मिलती रहीं,उठते रहे ,चलते रहे
क्या कहें ये सिलसिला अब जिंदगानी हो गया

Wednesday, November 23, 2011

पागलपन

वो है हवा तू उसको थामता क्यों है
उस बेजिस्म  को बांधता क्यों है
करेगा ज़िद तो कुछ भी नहीं पायेगा
उसकी एक नज़र से भी महरूम हो जायेगा
वो है साया तू उसको मांगता क्यों है
उस बेजिस्म को बांधता क्यों है.

Monday, November 21, 2011

जाने वो क्या है ?

हमें तुझसे नहीं तेरे अंदाज़ से डर लगता है
तेरे दिल में छुपी आवाज़ से डर लगता है
हर पल तेरे लहज़े से छलकता  है जो
तेरे बेनाम जज्बात से डर लगता है
लाख छुपाता है तू जिसे ,पर जो छुपता ही नहीं
हमको तेरे उस एहसास से डर लगता
हर पल तेरी आँखों से झांकता है जो
तेरी पलकों में छुपे उस राज़ से डर लगता है .

Friday, November 11, 2011

कुछ ना पूछिए

कुछ भी पूछिए ये हक़ीकत ना पूछिए
क्यों आपसे है मुझको मोहब्बत ना पूछिए
उम्र गुज़ार दूं मैं इंतज़ार में तेरे
मर जाऊं ,मिट जाऊं एक दीदार पर तेरे
मेरी दीवानगी की हदें ना पूछिए
कुछ भी पूछिए ये हक़ीकत ना पूछिए.
क्यों आपसे है मुझको मोहब्बत ना पूछिए

सोंचते हैं

सोंचते  हैं शहर से जाएँ  कहीं
ग़मों को छाँट आयें कहीं
घना हो गया है जंगल यादों का
कलम से काट आयें कहीं
कागजों का ढेर हो गया पास मेरे
बहते पानी में सिरा आयें कहीं
बन रहा है दर्द का दरिया मुझमें
चलो समंदर में उतर आयें कहीं
पल भर में उन्हें गले लगा लूँगा
वो मुझसे मिलने आयें तो कहीं
सोंचते हैं शहर से जाएँ कहीं

कैसे रह पाओगे तुम

जब किसी के प्यार के घर को जलाओगे तुम
ये बताओ क्या कभी चैन फिर पाओगे तुम
चाहते हो हर गुनाह माफ कर दूं मैं तुम्हारा
क्या मेरी एक भूल भी माफ कर पाओगे तुम
ये तुम्हारा हुक्म था,पलट कर न देखेगा कोई
क्या खबर थी पलट कर आवाज़ लगाओगे तुम
माना तुम्हारी आदत रही,जोड़ना और तोड़ना
पर अब मुझको कभी ना जोड़ पाओगे तुम
दिल में दर्द का दरिया गहरा,बहुत गहरा है
एक झलक भी दिखला दी तो डूब ही जाओगे तुम
जब किसी के प्यार के घर को जलाओगे तुम