Monday, December 3, 2012

आजकल रातभर जागती हूँ
और सोचता हूँ मैं ,कि
तेरी बेरुख़ी,तेरा बेगानापन,तेरी जुदाई
मेरी किस ग़लती की सज़ा होगी
शायद बेंतेहा प्यार की या मेरी वफ़ा की
मेरे विश्वास की या मेरे समर्पण की
या इस हिम्मत की,कि मैंने भी कोई ख़्वाब देखा
आजकल रातभर जागती हूँ
और सोचती हूँ मैं.

Saturday, December 1, 2012

अनजान,अँधेरे,उलझे रास्तों पर
मैं ख़ुद अपना हाथ थामें चल रही हूँ
पूछती हैं कई नज़रें सवाल कई,
मुस्कुराकर तीर सारे झेलती हूँ
मेरे वज़ूद की टूटन कोई पहचान ना ले
इसलिए दुनिया में घुलमिल रही हूँ 
हार कर भी जीत का दम भर रही हूँ
मैं ख़ुद अपना हाथ थामें चल रही हूँ .