Tuesday, March 20, 2012

प्रेम

यूं तो प्रेम में आत्मसम्मान की कोई जगह नहीं होती
वहां तो सिर्फ प्रेम ही प्रेम  है,

पर किसी के जीवन में अवांछित सा पड़े रहना भी ठीक नहीं
इसलिए मैनें अपने कुछ दायरे बना लिए हैं ,
मैं ये तो नहीं कहूँगी कि मैं खुश हूँ
पर हाँ ,अब मेरा हंसना और रोना
किसी की अपेक्षा या उपेक्षा की राह नहीं तकता .
 

Saturday, March 3, 2012

काश !

तुमने चाहा नहीं हालात बदल सकते थे
ये आंसू खुशियों में बदल सकते थे
तुम ठहरे रहे झील के पानी की तरह
दरिया बनते तो कहीं  दूर निकल सकते थे
वो ख़्वाब जो साथ हमने देखे थे
तुम्हारे हौंसलों से हकीक़त में बदल सकते थे
मैं बेदम हूँ तुम्हारे बगैर,पता है तुम्हें
साथ आते तो हम हर डर से निपट सकते थे