Sunday, May 26, 2013

" चिपक सी गयी है ये मुस्कराहट  जैसे ,
हटाता हूँ बार-बार पर हटती ही नहीं ,
फिर सोचता हूँ ,चलो अच्छा ही है ,
मेरे भीतर की तबाही पे ये एक पर्दा ही सही "

                                              रचना प्रेम

Wednesday, May 8, 2013

अब तेरे आग़ोश में खो जाने का मन है
ऐ ख़ुदा अब मुझको सो जाने का मन है
थक गयी  हूँ दुनिया के मसाइल से
अब तेरी पनाह में सुस्ताने का मन है