Saturday, March 3, 2012

काश !

तुमने चाहा नहीं हालात बदल सकते थे
ये आंसू खुशियों में बदल सकते थे
तुम ठहरे रहे झील के पानी की तरह
दरिया बनते तो कहीं  दूर निकल सकते थे
वो ख़्वाब जो साथ हमने देखे थे
तुम्हारे हौंसलों से हकीक़त में बदल सकते थे
मैं बेदम हूँ तुम्हारे बगैर,पता है तुम्हें
साथ आते तो हम हर डर से निपट सकते थे