तेरी नाराज़गी का सबब बनूँ चाह था कहाँ मैनें
इतना अपना दुनिया में कोई मिला ही नहीं मुझको.
यूं तो ख़ामोश रह कर भी अपना ग़ुबार छुपा जाती
तू नहीं दिखता तो खुद रो कर चुप जाती
दर्द बाँटनें की आदत पहले कहाँ थी मुझमें
इतना अपना दुनिया में कोई मिला ही नहीं मुझको .
याद आई उनकी तो नदी बन गए ,
ReplyDeleteउन्होंने देखा ही नहीं ,सो सहरा बने खड़े हैं यहाँ ,
वो चला गया हमे छोड़ कर ,
एक लावारिस सामान सा पड़े हैं यहाँ ,
आपका शिष्य--अनुराग अनंत